नज़राना इश्क़ का (भाग : 17)
जैसे ही जाह्नवी क्लास में इंटर हुई उसने देखा विक्रम अपने हाथों से फरी को खाना खिला रहा था, यह देखकर उसे बेहद हैरानी हुई। उसने उन दोनों को इग्नोर करने की कोशिश की मगर अनचाहे में भी उसके में में कई ख्याल आते जा रहे थे, जाह्नवी को आता देखकर विक्रम सामने की ओर मुँह करके बैठ गया।
'दौलत भी क्या गजब चीज है, कल तक ये भाई का दोस्त था अब इसका चमचा बना फिर रहा है, देखो तो कैसे बन रहा जैसे किसी ने इसे इस फरी की बच्ची को खाना खिलाते हुए ही नहीं देखा! ' जाह्नवी उन दोनों को तिरछी नजर से देखते हुए बुदबुदाई। 'ये लड़की भी कितना मासूम बनती है… दैय्या रे दैय्या! लगता है अमीर लोग पैदायशी एक्टर होते हैं, ये इस कॉलेज में बस आयी ही इसलिए होगी ताकि उस शिक्षा की तरह सब पर अपने अमीर होने का रौब झाड़ सके।' जाह्नवी लगातार सोचे जा रही थी।
"हे! निमय कहाँ है?" विक्रम ने जाह्नवी के पास आते हुए पूछा।
"मुझे क्या पता, आता ही होगा!" जाह्नवी ने सपाट स्वर में जवाब दिया। "वैसे भी रोज तो तुम गेट पर होते थे, उसके साथ ही क्लास में आते थे आज ये इतनी जल्दी कैसे.. वो भी उसके बिना?" जाह्नवी ने सवालों की जैसे झड़ी ही लगा दी।
"समय और आवश्यकता के अनुसार बहुत सारी चीजें बदल जाती हैं।" विक्रम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"वाह! क्या बदलाव है? वो तो देख ही लिया मैंने!" जाह्नवी ने तल्ख लहजें में कहा। "वैसे मेरा भाई आ जायेगा, तुम यहाँ अपनी आवश्यकता और समय पर ध्यान दो।" कहते हुए जाह्नवी ने उसकी ओर से मुँह फेर सीधे बैठ गयी।
"व्हाट? तुम्हें पता भी होता है तुम क्या बोल रही हो?" जाह्नवी के इस लहज़े के कारण विक्रम को गुस्सा आने लगा, वह अभी पिछले दिन जाह्नवी ने जो किया था उसको लेकर पहले से ही गुस्से में था।
"क्या व्हाट? अगर किसी की चमचागिरी कर रहे हो तो उसे कुबूलने में क्या जाता है?" जाह्नवी गुस्से से चिल्लाती हुई खड़ी हो गयी।
"मिस जाह्नवी प्लीज माइंड योर लैंग्वेज!" विक्रम का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
"व्हाट माइंड हाँ? पहले तो तुमने कभी पूछा नहीं कि मेरा भाई कहाँ है क्योंकि तुम उसके इंतेज़ार में घण्टे भर गेट पर रहते थे और आज यहां…! तुम तो फट्टू थे न? अचानक इतनी हिम्मत कहाँ से आ गयी कि मेरे भाई के बिन क्लास में आ गए?" जाह्नवी गुस्से में अनाप शनाप बके जा रही थी, जिसे सुनकर विक्रम का पारा चढ़ते जा रहा था, क्लास में मौजूद सभी ये देखकर हैरान और खुश दोनो हो रहे थे।
"क्योंकि अब वो टाइम से आने लगा! और अपनी जुबान को लगाम दो मिस जाह्नवी, मैं खुद को ज्यादा देर तक कंट्रोल नहीं कर सकूंगा।" विक्रम ने किसी तरह खुद को शांत करने की कोशिश करते हुए कहा।
"ओ फट्टू…! कंट्रोल कर रहा है, मत कर ना देखती हूँ क्या उखाड़ता है?" जाह्नवी ने चिढ़ाने की हरकत करते हुए बोला।
"अपनी जुबान को लगाम दो मिस जाह्नवी! वर्ना अंजाम अच्छा नहीं होगा!" विक्रम अपनी पूरी ताकत से चीखते हुए बोला, उसका चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था जबकि जाह्नवी उसे अभी और भी चिढ़ाते जा रही थी।
"इसके अलावा तो तुम कुछ कर नहीं सकते मिस्टर विक्रम हाहाहा…!" जाह्नवी ने हँसते हुए कहा, विक्रम की हर हरकत की नकल करते हुए वह उसे चिढ़ाते जा रही थी।
"तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे भाई के बिना कुछ नहीं हूँ तो गलतफहमी में हो तुम, उसने पहले दिन मेरी हेल्प की, अब वो मेरा दोस्त है, बस उसकी दोस्ती के खातिर तुम्हें कुछ बोल नहीं रहा।" विक्रम ने स्वयं पर काबू करने की कोशिश करते हुए कहा, उसकी आँखों में आँसू उतर आए थे।
"हाहाहा… सीधा क्यों नहीं कहते कि तुम फट्टू हो मिस्टर, फटती है तुम्हारी सबसे.. तुम बस चमचागिरी के लिए बने हो जाओ मैडम की चमचागिरी करो, अरे उनके लिए कुछ बना कर लेकर आओ..!" जाह्नवी ने अपनी हथेलियों को नचाते हुए कहा।
"बस बहुत हो गया मिस…!" विक्रम के संयम का बांध टूट चुका था, उसकी आँखे गुस्से से लाल हो चुकी थी। "चीजों को जाने बिना सही गलत डिसाइड करने का हक़ तुम्हें किसने दिया? क्या तुम कभी ये सोचती भी हो कि तुम्हारें बचपने से किसी को हर्ट भी होता है…!" विक्रम चींखता हुए बोला। "नहीं! बिल्कुल भी नहीं! बाकियों का छोड़ो तुम अपने भाई को हर्ट करने से बाज नहीं आती! अगर तुम्हें ये लगता है कि मैं किसी से डरता हूँ न, तो अपनी ये गलतफहमी जितना जल्दी दूर कर लो उतना ही सही होगा।"
"उलेलूलेलूले… फट्टू को फट्टू सुनकर बुरा लग गया!" जाह्नवी मासूम सा मुंह बनाकर चिढ़ाते हुए बोली।
"अपनी औकात में रहो मिस जाह्नवी! अगर तुम निमय की बहन नहीं होती तो अंजाम यहीं देख लेती।" विक्रम गुस्से से चिल्लाते हुए बोला, उसके स्वर में गुस्से के साथ पीड़ा स्पष्ट झलक रही थी।
"फिर आ गए बहाने पे..! अगर मैं निमय की बहन नहीं होती तो…!" जाह्नवी ने उसकी आँखों में आँख डालकर कठोर स्वर में उसी लहजें में चिढ़ाते हुए कहा।
"फिर तुम सोच भी नहीं सकती कि विक्रम से पंगा लेने का अंजाम क्या होता।" विक्रम गुस्से से चींखता हुआ बोला।
"बस इतना ही रट्टा मारकर आये हो क्या? जाओ जरा अपनी नई जॉब ढंग से कर लो.. चमचागिरी वाली!" जाह्नवी ने बनावटी हंसी हंसते हुए उसी लहज़े में कहा। "लोगों को लगता है दुनिया में दौलत ही सबकुछ है…!" जाह्नवी के चेहरे से उसका व्यंग्य स्पष्ट हो रहा था, उसने फरी की ओर देखते हुए कहा।
"जिस चीज को तुम जानती नहीं उस चीज में मत उलझा करो मिस जाह्नवी! तुम्हें क्या लगता है तुम जो करती हो वो सब सही होता है? अपनी हद में रहो वरना मैं भूल जाऊंगा कि तुम निमय की बहन हो..!" विक्रम चींखता हुआ बोला।
"तुम कुछ भी नहीं कर सकते मिस्टर विक्रम! फट्टू लोग चिल्लाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते।" जाह्नवी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, निमय का सब्र जवाब दे चुका था, संयम अब नहीं हो पा रहा था, उसका हाथ उठ गया, मगर इससे पहले उसका हाथ जाह्नवी को छू भी पाता, किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया, एक जोरदार धक्के के कारण विक्रम पीछे की टेबल से जा टकराया। वह जल्दी से संभलते हुए खड़ा हुआ, उसके सामने निमय खड़ा था जो गुस्से से उसे घूर रहा था।
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन पर हाथ उठाने की?" निमय ने उसका कॉलर पकड़कर झिझोड़ते हुए कहा।
"निमय मेरी बात सुनो..!" विक्रम ने उसके हाथ से अपना कॉलर छुड़ाते हुए कहा।
"बहुत सुन लिया, मुझे लगा था कि तू मेरा अच्छा दोस्त है मगर तूने ऐसी गुस्ताखी की जिसका अंजाम क्या होगा तुझे पहले से पता है।" निमय अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए कहा।
"तेरी दोस्ती की ही खातिर कब तक उसे छोड़े जा रहा था मगर उसे अपनी हद मालूम नहीं है।" गुस्से से चीखते हुए विक्रम ने निमय का हाथ झिड़क दिया।
"तुझे अपनी हद में रहना था विक्रम!" निमय उसकी ओर बढ़ते अपने हाथों को रोकते हुए कहा।
"हद क्या होती है शायद तुम जानते नहीं निम्मी! वरना तुम ये बात मुझसे नहीं कह रहे होते!" विक्रम उसकी ओर बढ़ता हुआ बोला। उसकी आँखों में आँसू उतर आए थे।
"अगर मैं तेरी हड्डिया तोड़े बिन छोड़ रहा हूँ इसका मतलब तुझे पता है कि मैं हद में हूँ!" निमय का गुस्सा सातवें आसमान के पार जा चुका था।
"जो लोग अपना मुंह नहीं धोते वो अक्सर आईने को गालियां देते नजर आते हैं।" विक्रम ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, उसका गुस्सा भी किसी तरह कम होने का नाम नहीं ले रहा था।
"चुपचाप यहाँ से चला जा विक्रम! इससे पहले की मैं अपनी हद से बाहर निकल जाऊं, तू मेरी हद से बाहर हो जा, मैं तुझे नहीं जानता, ना ही अब से मैं तेरा कोई दोस्त हूँ।" निमय गुस्से में चिल्लाते जा रहा था।
"यहाँ किसी और को भी अपनी हद सीखनी है मिस्टर निमय! अगर तुम उसकी हर गलती में भी उसके साथ रहोगे तो वो गलत सही का फर्क करना भूल जाएगी। और तुझे जाना है तो जा न, मुझे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता। और सुन…. मैं यानी विक्रम मल्होत्रा सन ऑफ विश्वजीत मल्होत्रा किसी की चमचागिरी नहीं करता, और किसी को कह देना वो इस बात को अपना कान खोलकर सुने और पोटली बांधकर अपने दिमाग में बैठा ले!" विक्रम खुद की ओर इशारा करते हुए गुस्से से बोला।
"तू अब अपनी हद में रह क… विक्रम! इससे पहले कुछ और बुरा हो चला जा यहां से..!" निमय ने गुस्से से दाँत पिसते हुए कहा।
"अरे अब और क्या बुरा होगा मिस्टर निमय! तुम्हें तो उस दिन अफसोस होगा जब तुम सच्चाई को जानोगे।" विक्रम ने तल्ख लहजे में कहा।
"बस बहुत हो गया तेरा….!" कहते हुए निमय ने विक्रम की ओर हाथ बढ़ाया। इससे पहले कुछ और होता फरी उन दोनों के बीच आ गयी, निमय यह देखकर हैरान था।
"चलो भाई…! जब कोई सुनने को तैयार न हो तो उससे कुछ कहा नहीं करते।" फरी ने विक्रम का हाथ खींचते हुए कहा।
"पर उसकी हिम्मत कैसे हुई बिना कुछ जाने तेरे बारे में अनाप शनाप बोलने की! कल से सुनते आ रहा हूँ मैं.. बर्दाश्त करने की भी हद होती है।" विक्रम ने फरी से हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"आप मेरे भाई हो न!" फरी ने धीमे से कहा, उसकी आँखों में आंसू उतर आए थे।
"हाँ!" विक्रम ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"तो फिर मैं जो कहूंगी आपको करना पड़ेगा।" फरी ने उसके हाथ को अपने दोनों हाथ से पकड़कर अपने सिर पर रोक लिया।
"हूँ…!" विक्रम ने धीमे से कहा और फिर फरी की सीट पर बैठ गया। फरी निमय को अजीब सी नजरों से देख रही थी मानों उससे कहना चाह रही हो कि वह उससे इस चीज की उम्मीद नहीं करती थी या फिर उसे लगता था कि निमय बाकियों से अलग लगता था, उसकी आँखों में उभरते भावों को देखकर निमय की मनोदशा बिगड़ती जा रही थी।
यह देखकर वह बेहद हैरान हुआ जा रहा था, उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि अभी अभी ये सब क्या हुआ! उसने अपने हाथों को काफी देर घूरा, फिर जाह्नवी की ओर एक नजर देखा, उसकी आँखें छलछला उठी थी वह तेजी से क्लासरूम से बाहर निकल गया। जाह्नवी को समझ नहीं आ रहा था वह क्या रियेक्ट करे वो यह देखकर हैरान थी मगर साथ में उसे ये भी लग रहा था कि आज विक्रम की वजह से उसका भाई उससे नाराज होकर चला गया।
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शाम को…!
निमय आज बेहद परेशान नजर आ रहा था, जो कुछ भी हो रहा था सब कुछ उसकी समझ से बाहर था। वो छत पर इधर से उधर कर रहा था। अचानक उसके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न विक्रम को कॉल करके सुबह जो कुछ हुआ उसके लिये माफी मांग ली जाए। उसने बार बार कॉल किया मगर उसका सर्वर नॉट रिचेबल बता रहा था। निमय अंदर ही अंदर घुटा जा रहा था, उसे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था कि अब ऐसा क्या करें जिससे फरी की उन नजरों का सामना न करना पड़े जिनसे आज हुआ। पता नहीं शायद वो उससे कभी बात भी न करे! अनेकों ख्यालों में लिपटा उलझा हुआ निमय किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा था।
थोड़ी देर बाद जाह्नवी छत पर आई, उसका चेहरा उतरा हुआ था, ऐसा लग रहा था मानों कोई खिली हुई कली बस मुरझा गयी! उसने निमय को देखा मगर कुछ बोला नहीं, दोनो थोड़ी देर तक छत पर बैठे रहे फिर निमय उठकर नीचे चला आया।
रात में….
आज निमय काफी दिनों बाद अपने कमरे में सोने जा रहा था, उसके हाथ में उसकी डायरी और पेन था, वह आज फिर से अपनी सारी उलझने डायरी से कहने बैठा था।
"हेलो डायरी!
तुम पूछोगी न कि आज का दिन कैसा गया? तो क्या बताऊँ आज का दिन कितना बुरा गया, सबसे सबसे बुरा..! मैंने सोचा नहीं था कल से भी बुरा कुछ हो सकता है और आज ये हो गया।
जैसे ही मैं कॉलेज पहुंचा मैंने देखा आज विक्रम बाहर खड़ा नहीं है, थोड़ी देर इंतज़ार किया पर वो नहीं आया फिर मैं सोचा क्लास से होकर आता हूँ वहां गया तो देखा कि विक्रम जानी से लड़ रहा था, यही नहीं वह जानी पर हाथ उठा दिया, जिसे देखकर मेरा खुद से नियंत्रण छूट गया और मैंने उसे जाने क्या क्या बोल दिया। मगर अब ऐसा क्या हुआ जो वो मेरा कॉल तक नहीं उठा रहा? कहीं उसने अपना सिम कार्ड ही तो नहीं बदल दिया?
मुझे पता नहीं कि फरी उसकी बहन कैसे हुई, कब हुई.. उसने मुझसे इतनी बड़ी बात छिपाकर रखी, उसका वो कंटीली निगाहों से देखना मेरे दिल को अब भी छलनी किये जा रहा है, पता नहीं मैं उसका सामना कैसे कर पाऊंगा।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती, अब मेरी बहन भी मुझसे बात नहीं कर रही, मुझे नहीं पता कि मैंने अब ऐसा क्या कर दिया जो उसने मुझसे बात तक करना बंद कर दिया.. ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ था, कभी भी नहीं…. ऐसा लग रहा है जैसे मैं टूटकर किसी नदी की तरह तरह बहता जा रहा हूँ.. आज मुझसे मेरा दोस्त, प्यार और बहन सब दूर चले गए…!
उम्मीद है कि मैं सबकुछ सही कर लूं डायरी, मुझे करना ही होगा। मुझे ये जानना होगा कि विक्रम फरी का भाई कैसे है, उसने मुझसे ये बात बताई क्यों नहीं! और वो जानी से क्यों लड़ रहा था..!
तकलीफ आज मेरे सीने पर किसी काले नाग जैसे कुंडली मारकर बैठ गयी है डायरी! मुझे सांस लेना तक मुहाल हो रहा है, अब तो सब कुछ कान्हा के हवाले हैं उन्हें ही सबकुछ ठीक करना होगा।
गुड नाईट डायरी, मेरा गम तो बिना वजह खत्म किये कम नहीं होगा।
राधे राधे..!"
लिखने के बाद डायरी साइड में रखकर वह सोने चला गया, मगर नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी, वह जब भी आंख बंद करता सुबह का दृश्य उसकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति चलने लगता, वह बार बार अपना सिर पीटे जा रहा था।
क्रमशः…!
🤫
27-Feb-2022 01:58 PM
फिर से इमोशनल पार्ट....!
Reply
मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:04 PM
जी
Reply
Seema Priyadarshini sahay
02-Feb-2022 04:19 PM
बेहद रोचक।आपमें लंबी कहानी लिखने का बहुत ही बेहतरीन ट्रिक है।मुझे सीखना होगा
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:05 PM
बहुत धन्यवाद मैम
Reply
Sandhya Prakash
01-Feb-2022 02:31 PM
Intresting
Reply
मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 09:05 PM
Thank you
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